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सुरभि गौवंश सेवा एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान ओरछा जिसे हम सुरभि गौधाम के नाम से जानते है। इसकी स्थापना परम पूज्य मलूकपीठाधीश्वर श्री राजेन्द्र दास देवाचार्य जी महाराज द्वारा बर्ष 2007 में की गयी थी। हरपालपुर एवं महोवा के रास्ते में कसाईयांे द्वारा लगभग 1000 गौवंश कत्लखाने गायों को भेजा जा रहा था। कुछ भक्तों की सूचना पर महाराज अनेक संतों को लेकर वहां पहुचे। भक्तों एवं प्रशासन के सहयोग से गांयों को छुड़ाकर पैदल रास्ते से ओरछा लाया गया। ओरछा में गायों के रहने की कोई व्यवस्था नही थी। तत्कालीन कलेक्टर टीकमगढ़ के सहयोग से नक्टा हनुमान जी मंदिर के पास आई.टी.आई. स्कूल के पीछे की पहाड़ी में अस्थायी रूप से गायों को रखा गया। रातों रात पहाड़ी को घेरकर चारों ओर से वाढ़ लगायी गयी। भूसा एवं टेंकर से पानी की व्यवस्था की गई। उस समय हरपालपुर से ओरछा लगभग 400 गायें ही पहुंच पायी। शेष गौमाताऐं रास्तें में ही इधर उधर हो गयी। इसके वाद उस स्थान पर गौशाला की स्थापना हुई। यह स्थल पहाड़ीनुमा झाड़ियों एवं बडे – बडे पत्थरों से भरा पड़ा था। निरन्तर 6-7 बर्षो तक सम्पूर्ण स्थल का समतलीकरण किया गया। धीरे-धीरे गायों के रहने के लिये गौशेड, पानी की टंकियों, वोरिंग एवं अन्य अधोसंरचना में कार्य किये गये।

गौशाला का नाम ‘‘सुरभि गौवंश सेवा एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान ओरछा’’ नाम रखा गया। मध्यप्रदेश गौसंवर्धन वोर्ड भोपाल में संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया गया। समिति का रजिस्ट्रेशन उपसंचालक सहकारी समिति संस्थाये सागर म.प्र. में 2008 में कराया गया। वर्ष 2006 में भक्त माली आश्रम कनक भवन मन्दिर में श्री कनक भवन विहारी विहारिणी जू सरकार की स्थापना की गयी थी। गौ शाला की देख रेख का सम्पूर्ण कार्य मन्दिर में रहने वाले साधु सन्तों एवं भक्तों की जिम्मेवारी पर छोड़ा गया है। गौशाला की स्थापना का मूल उद्देश्य निराश्रित असहांय, वृद्व, बीमार एवं किसानों द्वारा छोड़े गये गौवंश को एक स्थान पर आश्रय देकर वुन्देलखण्ड की गाय का संरक्षण एवं संवर्धन कर पर्यावरण की रक्षा करना है।